
माँ बनने का सफर एक अद्भुत अनुभव है | गर्भावस्था के साथ प्रत्येक महिला का अनुभव अनोखा...
माँ बनने का सफर एक अद्भुत अनुभव है | गर्भावस्था के साथ प्रत्येक महिला का अनुभव अनोखा होता है। जो कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के पहले कुछ हफ्तों में ही एहसास हो सकता है कि वे गर्भवती हैं, जबकि अन्य को तब तक कुछ भी पता नहीं चल सकता जब तक कि उनकी अवधि समाप्त न हो जाए।
जो महिला गर्भ धारण करने की कोशिश कर रही है उनके लिए पीरियड्स का मिस होना प्रेगनेंसी का शूरआति लक्षण हो सकता है |
ज़्यदातर महिलाए अपने शरीर में बदलाव को नहीं पहचान पाती | यदि सही जानकारी हो तो प्रेग्नन्सी का पता करना आसान जो जाता है |
प्रेग्नन्सी के लक्षण क्या होते है? (What Are the Symptoms of Pregnancy in Hindi?)
Pregnancy 9 महीने की लम्बी प्रिक्रिया है जिसमें महिला को अनेक बातो का ध्यान रखना पड़ता है | गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के लक्षणों को ट्रिगर करते हैं। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के कई लक्षणों का अनुभव होता है, जबकि अन्य को केवल कुछ ही लक्षण हो सकते हैं|
गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण (Symptoms of Early Pregnancy in Hindi)
प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण हर महिला में अलग होते है इसका कारण यह है की प्रकृति ने हर महिला का शरीर अलग बनाया है |
प्रेगनेंसी में शुरू में यह लक्षण दिख सकते है , जैसे:
- पीरियड मिस होना
- बहुत थकान या थकावट होना
- जल्दी जल्दी पेशाब आना
- सर चकराना
- उलटी आना
- कुछ खाते रहने की इच्छा होना या खाने से चीड़ होना
- स्तनों में संवेदनशीलता होना
- निप्पल्स का रंग बदलना और दर्द होना
- शरीर के तापमान में परिवर्तन
- हाई बी पी
- अत्यधिक थकान
- मुहांसे होना
- लगातार वजन होना
इसके अलावा एक महीने के बाद यह लक्षण भी हो सकते है:-
गर्भावस्था के बाद के चरणों में आपके शरीर में कई तरह के बदलाव हो सकते हैं (Other symptoms of pregnancy)
- कमरदर्द (Backache)
- संस्फुल्ना (Breathlessness)
- कब्ज़ (Constipation)
- बवासीर (बवासीर) (Haemorrhoids)
- सिर दर्द (Headache)
- सीने में जलन (Heartburn)
- त्वचा में खुजली (Itchy Skin)
- पैर में ऐंठन (Leg Cramps)
- मूड में बदलाव (जैसे बिना वजह रोना) (Mood Swings)
- आपके हाथों में झुनझुनी और सुन्नता (Tingling and Numbness in Hands)
- योनि स्राव (Vaginal Discharge)
- योनिशोथ (Vaginitis)
- वैरिकाज – वेंस/ पेरो में सूजन
प्रेगनेंसी में कौन सा योग करना चाहिए? (Which Yoga Should Be Done During Pregnancy in Hindi?)
- वृक्षासन
- ट्री पोज
- बद्ध कोणासन (बाउंड एंगल पोज़)
- ब्रिथिंग एक्सरसाइज
- बालासन (चाइल्ड पोज़):
- कैट-काउ पोज
- बटरफ्लाई पोज
प्रैग्गनैंसी के दौरान कौन से टेस्ट्स करवाने चाहिए? (Which Tests Should Be Done During Pregnancy?)
अगर किसी महिला को लगता है तो वो पहले घर में प्रेगनेंसी किट से टेस्ट कर सकती है लेकिन इसके रिजल्ट हर बार सही नहीं होते| प्रेगनेंसी जाँच के लिए और भावनात्मक बदलाव को जानने क लिए टेस्ट ज़रूरी होती है |
पहले तो प्रेगनेंसी है या नहीं है इसके लिए यह जाँच होती है :-
ब्लड टेस्ट और यूरिन टेस्ट जिसमें हॉर्मोन की जानकारी ली जाती है | (Blood Test and Urine Test for Pregnancy to Detect hCG Hormone)
पहले 12 हफ्ते के टेस्ट्स (Test in First Trimester of Pregnancy)
प्रेगनेंसी के शुरू के दिनों में महिलाओ के शरीर में बहुत बदलाव आते है जिनके कारण अधिक एनर्जी की ज़रूरत होती है | पहले ट्रिमस्टर में ये जांच करवाई जाती है :-
सी बी सी (कम्पलीट ब्लड काउंट) / CBC Blood Test
यह टेस्ट पता लगता है आपकी बॉडी में कोई इन्फेक्शजनं तो नहीं है|
हीमोग्लोबिन, आयरन और खून की जाँच करता है जिस से पोता लगता है माँ को एनएमईआ (ANAEMIA) तो नहीं है| अगर इस टेस्ट में कोई समस्या दिखाई देती है तो उसी के अनुसार इलाज किया जाता है ताकि माँ और शिशु स्वस्थ रहे |
ब्लड ग्रुप (Blood Group)
इस टेस्ट ब्लड ग्रुप A, B, Ab या O की जानकारी ली जाती है कभी बच्चा पैदा होते समय माँ को खून की ज़रूरत पद जाए तो उसके लिए त्यार रहने में मदद मिलती है |
Rh Factor
इसका पता करना बहुत ज़रूरी है माँ और शिशु दोनों के लिए यह एक प्रोटीन है जो माँ और शिशु का Rh factor अलग हो तो काफी समस्याए पैदा क्र सकता है |
रूटीन यूरिन टेस्ट (Routine Urine Test)
रेड ब्लड सेल्स और वाइट ब्लड सेल्स यूरिन ट्रैक्ट इन्फेक्शन का पता लगता है|
थाइरोइड टेस्ट (Thyroid Test)
थाइरोइड टेस्ट में थाइरोइड हॉर्मोन जैसे T3, T4 or TSH का पता लगता है जो शरीर के मेटाबोलिज्म के लिए ज़रूरी है| अगर थाइरोइड हॉर्मोन के लो लेवल शिशु के मेटाबोसिम का पता चलता है और शिशु के दिमाग के विकास पर असर करता है | इसके अलावा हाई लेवल थाइरोइड होने पर गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है |
गेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes)
कुछ महिलाओ को जिनके घर में माँ या बाप को डायबिटीज होती है उन महिलाओ में प्रेगनकी के दौरान डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है |
Vitamin B12
विटामिन बी12 आपके बच्चे के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के विकास और कार्य और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक है। विटामिन बी12 आपके बच्चे की सभी कोशिकाओं में आनुवंशिक सामग्री डीएनए बनाने में भी मदद करता है।
Vitamin D
कम विटामिन डी स्थिति वाली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान विटामिन डी अनुपूरण से शिशु के विकास में सुधार हो सकता है और गर्भावस्था के दौरान कम उम्र, प्रीक्लेम्पसिया, समय से पहले जन्म और गर्भकालीन मधुमेह के जोखिम को कम किया जा सकता है।
प्रेग्नस्य में इन्फेक्शन के लिए भी कई टेस्ट किये जाते है| इन टेस्ट से माँ से शिशु को होने वाले इन्फेक्शन का पता लगायाजा सकता है और उनका सही समय पर इलाज किया जा सकता है । इससे माँ-शिशु दोनों को स्वस्थ जीवन दिया जा सकता है ।
यह टेस्ट से इन्फेक्शन का पता लगाया जा सकता है :
11-13 हफ्ते में होने वाले टेस्ट्स (Second Trimester Test)
तीसरे से छः महीने का वक्त माँ क लिए अत्यधिकअच्छा होता है जहां माँ चल फिर सकती है और फिर भी बच्चे के ग्रोथ , किक्स और हिचकियो का अनुभव कर सकती है | इस दौरान आपका स्वस्थ स्ल्ह्कार कुछ सामान्य टेस्ट या यह कई अन्य जाँच की सलाह दे सकता है |
Genetic Disorder Screening:- जेनेटिक डिसऑर्डर स्क्रीनिंग आमतौर पर होने वाले मां को करवाने की सलाह दी जाती है। हालांक, डायग्नोस्टिक टेस्ट्स सिर्फ हाई-रिस्क मरीजों के लिए ही किए जाते हैं।
PAPP-A Screening
डाउन सिंड्रोम या अन्य जेनेटिक डिसऑर्डर के टेस्ट जैसे ट्राईसोमी 13, ट्राईसोमी 18 निम्नलिखित हैं:
एम्नियोसेंटेसिस - एम्नियोटिक फ्लूइड या बच्चे के इर्द-गिर्द मौजूद फ्लूइड की जांच की जाती है।
सेल-फ्री फीटल डीएनए टेस्टिंग की जाती है जिसमें मेटरनल ब्लड की जांच होती है ताकि फीटस के आस-पास किसी तरह की जेनेटिक असमानता का पता लगाया जा सके।
Third Trimester
ये ट्राइमेस्टर मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत जरूरी है और बच्चे का साइज इस ट्राइमेस्टर में बढ़ता जाता है और अब छोटा बच्चा मां के गर्भ में शेप ले रहा है। इसे अधिक न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है और इस कारण शरीर का मेटाबॉलिज्म बदलता चला जाता है। ऐसे में शरीर में इंसुलिन प्रोडक्शन बढ़ता है। इस स्टेज पर बच्चे के सही विकास को सुनिश्चित करने के लिए ग्लूकोज स्क्रीनिंग की जाती है। ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट और थायराइड स्क्रीनिंग की जाती है जो इससे पहले के सेक्शन में बताए गए हैं।
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड स्कैन (Ultrasound in Pregnancy)
अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है - गर्भावस्था के दौरान सोनोग्राफी क्यों जरूरी है?
आमतौर पर डॉक्टर पर पहला अल्ट्रासाउंड प्रेगनेंसी के 6 हफ्ते हफ्ते बाद करने की सलाह देते है |
गर्भावस्था के विभिन्न चरणों के दौरान सोनोग्राफी आवश्यक है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान; 18 से 20 सप्ताह के बीच एक अल्ट्रासाउंड यह निर्धारित करता है कि चीजें उसी तरह आगे बढ़ रही हैं जैसे उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। जब आप सोनोग्राफी कराने का निर्णय लेते हैं, तो हमारा सुझाव है कि आप सनराइज डायग्नोस्टिक टीम से जुड़ें, क्योंकि यह पुणे के सबसे अच्छे सोनोग्राफी केंद्रों में से एक है। हमें यकीन है कि आप अपने दोस्तों और परिवार को संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य जांच के लिए इसकी अनुशंसा करेंगे।
इस तथ्य के अलावा कि सोनोग्राफी मरीजों को शिशु की पहली तस्वीर के विशेष क्षण प्रदान करती है, अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी में कुछ महत्वपूर्ण नैदानिक कार्य भी होते हैं। वे माँ और बच्चे के स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
सोनोग्राफी का उपयोग विकासशील भ्रूण, गर्भाशय और प्लेसेंटा का विश्लेषण और निगरानी करने के लिए किया जाता है। भ्रूण और प्लेसेंटा के सामान्य विकास को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है।
जब भी कोई महिला प्रेगनेंसी के लक्षण महसूस करती है तो यह ज़रूरी होता है की आप अच्छे डॉक्टर और डायग्नोस्टिक सेंटर की सलाह ले। जो आपको आपकी स्थिति के बारे में सही जानकारी दे |
गर्भव्यवस्ता के महत्वपूर्ण समय में सही जानकारी हासिल करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है |
गणेश डायग्नोस्टिक एंड इमेजिंग सेंटर में, हम दशकों से अपने रोगियों को उत्कृष्ट सेवा और देखभाल प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं।
अपने परीक्षण के बारे में अधिक जानने के लिए आप हमारे ग्राहक कार्यकारी से 24X7 संपर्क कर सकते हैं।
हमारे यहां प्रेग्नन्सी से संबंधित सभी जाँच होती है
हमारी सेवाएँ
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प्रेगनेंसी के दौरान सावधानियां (Precautions During Pregnancy in Hindi)
गर्भावस्था एक महिला के जीवन का विशेष और संवेदनशील समय (special and sensitive phase) होता है। इस दौरान, मां और बच्चे दोनों की सेहत का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।
गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण सावधानियां: (Important precautions during pregnancy)
- संतुलित और पौष्टिक आहार लें (Healthy and Balanced Diet)
- नियमित डॉक्टर से परामर्श लें (Regular Doctor Consultations)
- हाइड्रेटेड रहें (Stay Hydrated)
- नियमित व्यायाम करें (Light Exercise)
- भरपूर आराम करें (Get Enough Rest)
- तनाव और चिंता से बचें (Avoid Stress and Anxiety)
- खतरनाक पदार्थों से बचाव (Avoid Harmful Substances)
- संक्रमण से बचाव करें (Prevent Infections)
- सही कपड़े और जूते पहनें (Wear Comfortable Clothes and Shoes
- यात्रा करने में सतर्कता बरतें (Travel with Caution)
प्रेगनेंसी में कौन से दर्द सामान्य हैं और कौन से नहीं? (Which Pains Are Normal During Pregnancy and Which Are Not in Hindi?)
प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिसके कारण महिलाओं को अलग अलग तरह के दर्द महसूस हो सकते हैं। कुछ दर्द सामान्य होते हैं और चिंता की कोई बात नहीं होती, जबकि कुछ दर्द गंभीर संकेत हो सकते हैं।
सामान्य दर्द (Normal Pains During Pregnancy)
- पीठ दर्द (Back Pain)
- पेट में खिंचाव का दर्द (Round Ligament Pain)
- सिर दर्द (Headache)
- टांगों में ऐंठन (Leg Cramps)
- छाती में जलन (Heartburn)
असामान्य दर्द (Abnormal Pains During Pregnancy)
- पेट में तेज दर्द (Severe Abdominal Pain)
- सीने में दर्द (Chest Pain)
- सिरदर्द के साथ धुंधली दृष्टि (Headache with Blurred Vision)
- लगातार कमर दर्द (Persistent Lower Back Pain)
- जांघों या पिंडलियों में तेज दर्द (Sharp Pain in Legs)
- योनि से खून आना और दर्द (Vaginal Bleeding with Pain)
- पेशाब करते समय दर्द (Pain During Urination)
प्रेगनेंसी में योग करने के फायदे (Benefits of Yoga During Pregnancy in Hindi)
प्रेगनेंसी के दौरान योग (Yoga) न केवल शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में भी मदद करता है। यह गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
- शारीरिक लचीलापन बढ़ाना और ताकत में सुधार
- कमर दर्द और जोड़ों के दर्द में राहत
- मानसिक शांति और तनाव में कमी
- बेहतर नींद
- ब्लड सर्कुलेशन बेहतर बनाना
- प्रसव के लिए तैयारी
- हार्मोनल संतुलन बनाए रखना
- मां और बच्चे के बीच का जुड़ाव बढ़ाना
- वजन नियंत्रण