Login

लकवा होने के लक्षण क्या है? जानें, इसके कारण और इलाज

लकवा होने के लक्षण क्या है? जानें, इसके कारण और इलाज

आजकल के रहें सेहेन के तरीके, खान पान इत्यादि कई बीमारियों का कारन बन रहे हैं। लकवा उनमे...

लकवा मांसपेशियों का रोग है, जब शरीर के किसी एक हिस्से की मासपेशियां काम करना बंद कर देती हैं, तो उसे लकवा पड़ना कहते हैं। लकवे के दौरान लकवा ग्रस्त व्यक्ति शरीर की एक या उससे अधिक मांसपेशियों को हिला नहीं पाता। लकवा शरीर के किसी एक हिस्से में हो सकता है या पुरे शरीर में भी हो सकता है। इसमें शरीर के लकवा ग्रस्त हिस्से और मस्तिष्क में ठीक से संचार नहीं होता। लकवा होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे की खराब खानपान, बदलता खानपान इत्यादि। 

पार्लीसिस/लकवा के प्रकार क्या हैं?

पैरालिसिस या लकवा के हो सकते हैं, का एक या उससे ज़्यादा हिस्से प्रभावित हो सकते हैं। लकवा से शरीर का कितना हिस्सा प्रभावित होता है , इससे लकवा के प्रकार बनाये गए हैं। 

  • मोनोप्लेजिक लकवा (monoplegia) - मोनोप्लेजिक लकवा शरीर के किसी एक हिस्से को प्रभावित करता है। इसमें ज़्यादातर एक बाह प्रभावित हो सकती है। मोनोप्लेजिक लकवा या मोनोप्लेजिया कई कारणों से हो सकता है जैसे की सेरिब्रल पाल्सी, स्ट्रोक ज़्यादातर लोकलाइज़्ड स्टोके। 
  • हेमिप्लेजिक लकवा (hemiplegia)- हेमिप्लेगीस लकवा में शरीर का एक तरफ का पूरा हिस्सा प्रभावित होता है। इसमें एक तारक का हाथ, पेट , कंधा सीना , चेहरा , पैर प्रभावित होते हैं। यह ब्रेन के एक हिस्से को नुकसान होने की वजह से हो एकता है, आमतोर पर प्रभावित दिमाग का हिस्से शरीर के दूसरी साइड को कंट्रोल करता है। यह ब्रेन स्ट्रोक , ट्यूमर इत्यादि की वजह से हो सकता है। 
  • पैराप्लेजिक लकवा(paraplegia) - इस प्रकार के लकवा में दोनों पैर और धड़ का निचला हिस्सा प्रभावित होता है। 
  • क्वाड्रिप्लेजिया या टेट्राप्लेजिआ लकवा (quadriplegia or tetraplegia)- क्वाड्रीप्लेजिया गर्दन के नीचे का लकवा है, इसे टेट्राप्लेजिआ भी कहा जाता है। इसमें शरीर के दोनों हाथ दोनों पैर धड़ प्रभावित आता है। यह ज़्यादातर तब होता है जब आपकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगे। 
  • बेल्स पाल्सी (bell's palsy) - यह शरीर में आम तोर पर चेहरे का लकवा होता है। इसमें चेहरे की मासपेशियां प्रभावित होती हैं। इसके लक्षण मेह टेढ़ा होना है जिसके कारण खाना खाने में तकलीफ हो सकती है। 

लकवा के लक्षण

lakwa ke lakshan in hindi

लकवा के लक्षण आम तोर पर पहचाने नहीं जाते। लकवा में मरीज कको लकवा ग्रस्त हिस्सा मह्सूस होना बंद हो जाता है। लकवा से उस हिस्से की मांसपेशियों में नियंत्रण नहीं रहता। लकवा शरीर के किसी एक या एक से ज़्यादा हिस्से में भी हो सकता है। लकवा होने के दौरान कुछ लक्षण देखे जा सकते हैं जैसे की - 

  • मरीज को भ्रम हो सकता है या उसकी चेतना में फर्क आ सकता है। 
  • शरीर का हिस्सा सुन्न होना या शरीर का संतुलन बिगड़ना। 
  • सर में दर्द होना, यह दर्द काफी तेज़ भी हो सकता है। (headache)
  • अक्सर साँस लेने में भी कठिनाई हो सकती है। (breathing difficulty)
  • मुँह से खुद ब खुद लार गिरना।
  • बोलने, समझने, सोचने, लिखने पढ़ने में कठिनाई हो सकती है। 
  • मूत्राशय या आंतो पर नियंत्रण में कमी होना। 
  • व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आना। (behavioural changes)
  • देखने में या सुनने में कमी होना। (hearing and speech deficit)
  • मन मिचलाना या उलटी होना। (nausea and vomiting)
  • बेचैन होना (anxiousness)
  •  प्रभावित हिस्से में दर्द होना। (pain in affected area)

लकवा होने के कारण

लकवा होने के कई कारण हो सकते हैं, लकवा शरीर के किसी भी एक हिस्से या एक से ज़्यादा हिस्से को प्रभावित कर सकता है। इसके कुछ कारण निचे लिखे हैं:

  • रीढ़ की हड्डी में चोट (spinal injury) - रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से शरीर की किसी हिस्से और ब्रेन की बीच सिग्नल (signal) पहुंचाने में दिक्कत या रुकावट आ सकती है , जिसके कारण लकवा हो सकता है। चोट लगने का स्थान और उसकी गंभीरता से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है की शरीर का कितना हिस्सा प्रभावित होगा। 
  • कुछ प्रकार की बीमारिया - कुछ नसों की बीमारियां या कुछ और स्तिथियाँ जो नस या मांसपेशियों को नुकसान पहुचाये , उससे भी लकवा हो सकता है। जैसे की पोलियो , सेरिब्रल पाल्सी , गुल्लिअन बारे सिंड्रोम या कुछ प्रकार के मस्कुलर डिस्ट्रोफिक सिंड्रोम। 
  • स्ट्रोक (stroke) - जब ब्रेन के किसी हिस्से में ब्लड सप्लाई कुछ समय के लिए नहीं पहुंच पाता हो वह उस ब्रेन के हिस्से को नुक्सान पंहुचा सकता है जिसके कारण लकवा हो सकता है। भारत में लकवा का सबसे आम कारण स्ट्रोक है। 
  • मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस (multiple sclerosis)- यह एक प्रकार की ऑटो इम्यून बीमारी है। इसके कारण लकवा और अन्य काफी समस्याएं हो सकती हैं। 
  • पोलिओमाएलाईटिस (poliomyelitis)
  • पेरिफेरल न्युरोपैथी (peripheral neuropathy)
  • ट्रामा (trauma)
  • सेरिब्रल पाल्सी (cerebral palsy)
  • बोटुलिस्म (botulism)
  • स्पाइन बिफिडा (spina bifida)
  • गुल्लिअन बर्रे सिंड्रोम (guillain barre syndrome)
  • ह्य्पोकेलेमिआ (hypokalemia)
  • पार्किंसन डिजीज (parkinsonism)

लकवा की डायग्नोसिस/निदान 

कुछ टेस्ट या परीक्षणों से लकवा के कारण का पता लगाया जा सकता है 

  • ब्लड टेस्ट (blood test) - ब्लड टेस्ट लकवा के लक्षणों का पता लगाने में मदद करता है जैसे की सूजन, ऑटोइम्म्युने बीमारियां (autoimmune diseases)इत्यादि। 
  • स्पाइनल टैप (spinal tap) - स्पिनल टैप का प्रयोग करने से मल्टीपल स्क्लेरोसिस (multiple sclerosis) या गुल्लिअन बैरे सिंड्रोम (guillain barre syndrome) का पता लगाया जा सकता है। 
  • बायोप्सी (biopsy)- बायोप्सी से कई प्रकार की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है जैसे की मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (muscular dystrophy) या न्यूरोमस्कुलर बीमारियां (neuromuscular diseases)। इस प्रोसेस में माइक्रोस्कोप की सहायता से मांसपेशियों का एक छोटा हिस्सा निकला उसे स्टडी किया जा सके। 
  • इमेजिंग टेस्ट (imaging tests) - कई प्रकार की इमेजिंग तकनीक जैसे की एक्स रे (X-Ray) , पेट स्कैन (PET scan), ऍम आर आई स्कैन (MRI scan)इत्यादि से भी लकवा के कारणों का पता लगाया जा सकता है। 
  • एलेक्ट्रोमोग्राफिक और नर्व कंडक्शन स्टडी (electrographic and nerve conduction study) - इन टेस्ट की मददसे नर्व में या मांसपेशियों में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी और नर्व सिग्नलिंग का पता लगाया जा सकता है। 

लकवा का इलाज 

lakwa ka ilaj

लकवा अक्सर परमानेंट होता है पर कुछ ट्रीटमेंट्स से लकवा के लक्षण को बढ़ने से रोका जा सकता है और कुछ प्रकार में कुछ हद तक कम भी किया जा सकता है। 

  • फिजिकल थेरेपी (Physical Therapy) - फिजिकल थेरेपी से मांसपेशियों में ताकत में सुधर हो सकता है अगर नियमित रूप से की जाये तो। 
  • ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) - लकवा ग्रस्त होने के बाद भी व्यक्ति को रोज़मर्रा के कार्यों को करने के तरीके बताने चाहिए। 
  • बोलने और निकलने की चिकित्सा- यह तरीका बोलने और खाना निगलने में मदद करता है और आसान बनाता है। 
  • दवाइयां- कुछ दवा भी लकवा के लक्षणों को कण्ट्रोल करने में भी मदद करता है। 
  • सर्जरी- कुछ केसेस में सर्जरी की मदद से लकवा के कारणों को ठीक किया जा सकता है। 
  • सहायक तरीके- व्हीलचेयर (wheelchair) या कुछ अन्य उपयोग में आने वाली चीज़ो से जीवन की गुणवत्ता में सुधर करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है। इनका इलाज और समय से जाँच करवा लेना बहुत महत्वपूर्ण है। समय से इलाज करवाएं और जाँच केंद्र पर जाँच करवाए। गणेश डाइग्नोस्टिक एंड इमेजिंग सेंटर बहुत सटीक डायग्नोसिस देने की कोशिश करते है। ताकि आपके इलाज में बेहतरीन प्लान बन सके और आप किसी भी बीमारी से निजाद पा सके। हमारे यहां सी टी स्कैन में और अन्य कुछ टेस्ट में लगभग 50 % ऑफ भी मिलता है।

हमारे डॉक्टर से फ्री कंसल्टेशन/बातचीत करें।

  • कंसल्टेशन डॉक्टर- डॉ. रवीन शर्मा ( MBBS , MD Radiologist )
  • फ़ोन नंबर- +91-9212125996
  • उपलब्धता- 24*7*366

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

लकवा के शुरुआती लक्षण क्या होते हैं?

लकवे के कुछ शुरुवाती लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं 

  • जुबान तुतलाना, (slurred speech)
  • हाथ में झुनझुनी, (vibrations in hand)
  • मुंह टेढ़ा होना । (deviated mouth)

इन लक्षो के अल्वा भी कुछ लक्षण हो सकते हैं जैसे की 

  • बार-बार चक्कर आना, (frequent fainting)
  • डबल विज़न या दोहरा दिखना, (double vision)
  • चलने में संतुलन बिगड़ना (trouble walking)

यदि आपको इनमे से कुछ नजर आता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। 

पैरालिसिस अटैक से पहले क्या होता है?

लकवा के पहले से शरीर में आम तोर पर कोई लक्षण नज़र नहीं आते।  बहुत कम मामलों में इसका पहले से पता लगाया जा सकता है।  यह  बहुत जल्दी होता है,  मरीज कुछ समझ पाए या स्थिति को संभाल पाए उससे पहले लकवा अटैक आ चूका होता है।  लकवा  का पहले से पता नहीं चल पाता है लेकिन जिन लोगों को पहले भी लकवा आता है उन्हें सावधान रहना चाहिए।  

लकवा का पता कैसे लगाया जाता है?

लकवा के कुछ लक्षण हो सकते हैं जिससे पता लगाया जा सकता है जैसे की 

  • बोलने में दिक्कत होना   (difficulty in talking)
  • शरीर के एक हिस्से में कमजोरी होना (weakness)
  • टीआईए (TIA- transient ischemic attack) के एपिसोड में भी लकवा आने की सम्भावना बढ़ती है। 

पैरालिसिस कितने दिनों में ठीक होता है?

डॉक्टर्स के कहने के मुताबिक, लकवा आने के दो-तीन दिन में मरीज  में सुधार शुरू हो जाना चाहिए,  छह महीने में रिकवरी आना शुरू होती है। डेढ़ साल में पूरी तरह से मांसपेशियों में रिकवरी आ जाती है। इस समय के बाद रिकवरी आने की संभावना बहुत कम  हो जाती है।

लकवा से बचने के लिए क्या खाना चाहिए?

लकवा के मरीज खानपान में ऐसी चीज़ों का सेवन करें जिनमें पोटैशियम भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। खाने में फल, सब्‍जि‍यों और दूध के उत्‍पादों का सेवन करें। कई फल जैसे केला, एप्रिकोट, संतरा, सेब का सेवन करन चाहिए । सब्जियों में आलू, शकरकंद, स्पालक , टमाटर का  सेवन करें। ऐसा खाना खाये जिसमे में पोटैश‍ियम भरपूर मात्रा में हो।